प्रकृति मं सृष्टि के नये रुप को पाने की अवस्था को जोमनामा अथवा नामा जोनोम भी कहते है। कहने को मतलब यह है कि फसलो की नई फसल तैयार होने की प्रक्रिया को एंव भागीदारी का पर्व है जोमनामा।
आदिकाल से लोक कथा के रुप में प्रचलित कहानी इस प्रकार है।
सुरमी एंव मदे को सबसे छोटा पुत्र लिटा के युवा अवस्था पर पहुचने एवं दुरमी के बच्चे के द्वारा नाजायज पुत्र कहकर अपमनित करना ही करण बना की लिटा अपने पिता की खोज मे दिन रात व्याकुल हो उठा। और अपनी माता से जानकारी लेकर अपने पिता की लाश एवं हड्डी के अवशेष को लाने के लिए तात्पर्य हुआ।
अपनी माता के द्वारा दिये गए दो प्रकार को रोटियों के लेकर तीर धनुष से लैस लिटा जंगल की ओर चल पड़ा। युध्द में बरहा सिंगा की मौत के घाट उतार कर लिटा अपने पिता के अवशेष लेकर घर वापस आया परन्तु जिवित पिता की इच्छा ने लिटा को और व्याकुल कर दिया। पौंवई बोंगा और जायरा के बातचीत का अनुसरण करते हुए, अमृत जल को प्राप्त करने के लिए बगीये राजा से उलक्ष बैठा। अमृत जल लेकर सुबह घर पहुचा अमृत जल के छिड़कव से लिटा के पिता सुरमी पुनः जी उठा। इस पर्व को आज भी आस्था पुर्वक जोमनामा के रुप मे मनाया जाता है।