Skip to content
Adivasi HO Samaj Mahasabha – Reg No:855/ Year 2009-10 Jharkhand

Adivasi HO Samaj Mahasabha – Reg No:855/ Year 2009-10 Jharkhand

Reg No:855/ Year 2009-10 Jharkhand

  • Home
  • विभाग
    • कला और संस्कृति विभाग
      • दमा और दुमेंग
      • बनाम
      • रुतू
      • सुसून
      • दुरं
      • किलि
    • शिक्षा और स्वास्थय विभाग
      • हो भाषा
      • जड़ी-बुटी
      • देवां
    • क्रीड़ा विभाग
      • सेकोर
      • चुर
    • बोंगा बुरु विभाग
      • दोस्तुर
        • मागे पर्व
        • बह: पर्व
        • हेरो पर्व
        • जोमनमा
      • आदिड.
      • आंदि
      • गोनोए
      • जोनोम
  • सेवाएं
  • हो समाज के बारे में
  • शाखा
  • हो कैलेंडर
  • संस्था
  • Toggle search form

मागे पर्व

आदिवासी #हो समुदाय के नव वर्ष का पहला और सबसे बड़ा त्योहार है- मागे परब। यह फसल के कटने व खेत खलिहान के कार्य खत्म होने के बाद माघ महीने के पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस पर्व के मनाने के पीछे अनेक कहानियां प्रचलित हैं। इनमें नई जगह गांव बसाने की एक कथा भी प्रचलित है।

दरअसल, मागे शब्द दो शब्दों का योग है। मा का अर्थ ‘मां’ और गे का मतलब ‘तुम ही हो’ होता है। संपूर्णता में मागे का अर्थ स्त्री तुम ही हो होता है। इस तरह यह धरती माता के साथ गो माता का पर्व है।

दूसरी मान्यता है, सिञबोंगा यानी ईश्वर ने सृष्टि की रचना लुकु व लुकुमी से की। दोनों में स्त्री व पुरुष का बोध जगाने के लिए अगल अलग तरीके से जानकारी दी।

महिलाएं ग्रहण नहीं करतीं प्रसाद — मागे परब के दौरान सभी देवी देवताओं के नाम नए फसल से बने हंड़िया जमीन में डालकर खुशहाली और समृद्धि की कामना की जाती है। यह पर्व ठ दिनों तक मनाया जाता है। मुख्य पर्व छठे दिन होता है। इसे सामूहिक रूप से जाहेरथान में मनाया जाता है। इस दिन लोग नाच गान करते हैं। इस परब पर दो मुर्गो की बली दी जाती है। महिलाएं प्रसाद ग्रहण नहीं करती हैं।

#अनादेर : मागे परब का पहला दिन होता है। देशाउली में पूजा होता है। सिंञबोंगा की उपासना करते हैं। गांव के सभी पुरुष इसमें भाग लेते हैं।

#गउमारा : दूसरे दिन गाय की पूजा होती है। दीमक के बनाए मिट्टी के टिल्हे को दिऊरी के ंगन में लाकर जामुन के पत्ते से पूजा जाता है। युवा टिल्हे के चारों ओर सांड़ का वाज निकालकर घूमते हैं। वे हंड़िया का सेवन करते हैं।

#ओतेइली : तीसरे दिन घर की सफाई के बाद दिउरी के घर जाते हैं। दिउरी और उनकी प}ी को एक जगह बैठा कर पूजा स्वरूप हड़िया भेंट करते हैं। पूर्वजों को भी हंड़िया समर्पित किया जाता है।

#हे: सकम : जंगल से साल वृक्ष का नया पत्ता लाते हैं। मान्यता के अनुसार इसी दिन मानव को हस्तशिल्प कला की जानकारी मिली थी। इसी दिन लोगों को लिज (कपड़ा), कातु (औजार), चाटु (घड़ा) बनाने का ज्ञान मिला था। ईश्वर ने रेशम कीट के रूप में सूत निकालना और मकड़ी के रूप में कपड़ा बुनना सिखाया था।

#गुरि:ई या लोयो : पांचवें दिन मनाए जाने वाले गुरि:ई में गोवां बोंगा की पूजा अर्चना होती है। इस दिन घर ंगन को गोबर से लीपा जाता है।

#मागे_परब : दोपहर बाद दिऊरी के घर ंगन में चुरुई बनाई जाती है। पूजा के लिए तीन मुर्गी की जरूरत होती है। काली मुर्गी को वनदेवी के नाम छोड़ दिया जाता है। बाद में युवा तीर से शिकार करते हैं। रातभर नाच गान होता है।

#जतरा : मुख्य परब के एक दिन बाद बासी परब होता है, जिसे जतरा कहते हैं। इस दिन दिऊरी के ंगन से चुरुई उतारा जाता है। इसी दिन लुकु व लुकुमी दंपती बनते हैं।

#हर मागेया : अंतिम दिन को हर मागेया कहा जाता है। गांव से बड़मों यानी दुष्ट त्मा को भगाया जाता है। हाथों में डंडे लिए युवक गांवों में घूमते हैं। हर घर से चावल एकत्रकर गांव के बाहर पकाकर खाते हैं।

 

मागे पर्व बह: पर्व हेरो पर्व जोमनमा

Spread the love

Copyright © 2023 Adivasi HO Samaj Mahasabha – Reg No:855/ Year 2009-10 Jharkhand.

Powered by PressBook Masonry Blogs

WhatsApp us