हो आदिवासियों के प्रत्येक परिवार के रहवास में अवस्थित निजी पुरजा स्थल जहाँ कुल देवता अथवा हाम् हो दुम हो की उपासना की जाती है।
यह अत्यन्त ही पवित्र स्थल है। यह वंश से बाहर के व्यक्तियों के लिए वर्जित स्थल है। वंश के सदस्य भी शरीरिक पवित्रता की स्थिति में ही प्रवेश पा सकते हैं।
आदिंग-हो आदिवासियों की सबसे अहम एंव जरुरी हिस्सा है-जीवन पध्दति का । आदिंग आम तौर पर मकान के उस कोने में बनाया जाता है जिधर सकारात्मक किरणों का प्रभाव रहता है। अथार्त मकान का मुख्य द्वार यदि पुरब की ओर हो तो आदिंग दक्षिण की ओर होगा।
आदिंग हो आदिवासियों की आस्था-विश्वास एंव शक्ति को केन्द्र है। अपने जीवन के सभी क्रिया-कलापों को आदिंग मे स्थित पूर्वजों की आत्मा को जानकारी देकर आरभं करते हैं। यह सर्व विदित है कि हो आदिवासी जीवन और जीवन के पश्चत के अवरुओं पर विश्वास करती है।
आदिंग में सभी पर्व-त्योहोरो के मौके में सर्व प्रथम पूर्वजो को अदर-सत्कार स्वरुप इस जीवन मे ग्रहण किये जाने वाले भोज्य अर्पित किये जाते हैं। जप-तप द्वारा निर्मित सोम रस(इली) को चढ़ावा अर्पित किया जाता है।
आदिंग मे किसी प्रकार की अपवित्रता या गलती होने की स्थिति मे परिवार के लोगो के समक्ष घर मे प्रतिक्रिया स्वरुप साफ अथवा गन्दगी मे उत्पन होने वाली बड़ी गलितयाँ दिखाई पड़ती है- आस-पास मडंराने लगती है। यह एक प्रकार की सूचना है- सावधान अपनी गलतियों के यथा शीघ्र सुधार लें।
आदिंग मे वंश को सामान्य मृत्यु वाले सदस्यों की आत्मा के पुकार के पश्चात् जगह दी जाती है जिसे ‘हाम हो दुम हो’ कहा जाता है।