हो जन जातियों का प्रकृति के स्वभाव एंव गतिविधि के अनुरुप जाड़े के मौसम के जाते-जाते बसन्त के अगमन के साथ मनाया जाता है। यह पर्व साल के फूल को आधार मान कर प्रकृति को सम्मान देने का त्यौहार है. साल के वृक्षों में जब फूल अपने प्रारभिक अवस्था में रहता है,-यहा वह समय है जब साल के फूल की आराधना एंव उपासना करते है। इस सृष्टि मे साल का फूल सबसे निराला है। सृष्टि के मूल तत्व को समेटे हुए साल के फूल को हो जनजाति ने सम्मान पूर्वक अपनाया है। साल फूल की गरिमा वृक्ष से गिरने के बाद समाप्त हो जाती है। इसलिए फूल के फूटने से पूर्व ही पूजा-अर्चना के लिए उपयोग किया जाता है।
हो जनजातियों में प्रचलित किवदन्नती है कि अदिकाल में लुकु कोड़ा और लुकु कुड़ी द्वारा मागे पर्व को मनाने के बाद इली(पुजा मे उपयोग होने वाला डिंयग) का अत्यधिक सेवन के करण बोंगा-बुरु का पुजा सम्मान नही होने लगा। जिससे नाराज हो कर बोंगा बुरु(बगीये नागे एरा) द्वारा भय एंव आकारन्त का महौल बनने लगा। लुकु कोड़ा नशे मे चुर रहने लगा और लुकु कुड़ी जंगल एव नदियों मे दैनिक कार्य के दौरान बोंगाउको के द्वारा डराया जाने लगा। जब डर की सीमा असहनीय हो गई तो लुकु कुड़ी गुस्से से तमातमाती हुई नशे मे चुर लुकु कोड़ा को अपनी लतो से प्रहार किया। जिससे लुकु कोड़ा का नशा हिरण हो गया और लुकु कोड़ा ने अपने उपर हुए प्रहार को प्रयोजन पूछा। लुकु कुड़ी ने विस्तार से सभी बातों को बताया। लुकु कोड़ा के समक्ष मे सरी बाते आ गई और उन्होने ने लुकु कुड़ी से कहा अपने पति का अपमान के भरपाई हेतु जंगल के ऐसे वृक्ष पुष्प से पुष्पित करा जो कभी ना मुरक्षए ।लुकु कुड़ी पति के मान-सम्मान हेतु जंगल के विभिन्न फूलों को लेकर आई लेकिन घर अंगन तक पहुचते-पहुचते सभी फुल मुरक्षा गए। इसी सोच में बैठी उसे जंगल में एक बात-चीत सुनाई दी। पौंवई बोंगा अपनी प्रेमिका जायरा से बात-चीत के क्रम में लुकु कुड़ी के दुखों का जिक्र करते हुए निदान भी बताया की यदि लुकु कुड़ी पुरब में सात योजन और सात पहाड़ो को पार कर जाएगी तो वहाँ साल के वृक्षों वन मिलेगा। लुकु कुड़ी उन बातो को अनुसरण करते हुए सात पहाड़ो के पार जब पहुची तो साल के वनो से भरी जगह को देखा। लुकु कुड़ी ने विशाल साल के वृक्ष के नीचे पहुच कर यह गीत गया-
देला रे सराजोम बड़ा
देला रे नाड़ा गुन में।
देला रे षुड़ा संडेन
देला रे नोसोरेन मे।
इस गीत के प्रतिध्वनित होते ही साल का वृक्ष स्वतः क्षुक गया और लुकु कुड़ी अंचल भर कर के साल के फूल को तोड़ लिया।
साल के फूल से अपने पति को सम्मानित करते स्वयं लुकु कुड़ी भी सम्मान की हकदार हो गई। इस प्रकार बाहा पर्व अपनी निरंतर लिए हुए आज भी मान सम्मान साथ संस्कृतिक पंरपरा को संजोए हुए है।
बाहा पर्व में मुख्य रुप से दस ताल होते है। ताल पर आधारित इस प्रकार है।
- बह ताड़ः-
बड़ा गुतु कोदो रेको सेनोः तना
देला रे गोलगचि इञ षुनुम लेया,
डलि गल कोदो रेको विरड तना देला रे मोचोकुंदि इञ नकिः लेया।
- राजा ताड़ः-
देला रे सराजोम बड़ा
देला रे नाड़ा गुन में।
देला रे षुड़ा संडेन
देला रे नोसोरेन मे।
- जपे ताड़ः-
चेतन कुटी रे गोसञ
तेरे या तेर यको, गोसञ
लतर कुटी रे गोसाञ
मरेया-मरेया को गोसाञ
सारि जपे सारि।
- चगुडियाः-
नोको कोरे गा को लडइ तना
लोव बह नगारा दो रुमुल केना
चिमय कोरे गाको तना
निचः बह रोड़ोषिडगी कुड़ु युर केना।
- गुटुअ ताड़ः-
दरु-दरु दो गोड़गोर सालु
नलोम चले ना गोड़गोर सालु
कोलो-कोतो दो बड़िजा पियुड
नलेम केको मा बडिजा पियुड।
- दांओणेयाः-
नमदो रिता मरं दई।
मरं गड़ा लेयोः लेयोः
नमदो रिता मरं दई
काए नातु गो मेया।
- गेनाः-
बह बुरु वा ददा, बोडगा बुरु वा।
मिसा रेयोह् बा ददा बियुरा तुउ बेन।
बह बुरु वा ददा, वोडगा बुरु वो
बसा बड़ेडा ददा नचुरा तुउ बेन।
- जदुरः-
नको मको बिरको तला रे
नोकोन दरु नेषु मरं आ?
चउरासि दिषुम तला रे-
नोकोन राजा नेक सुन्दोरा?
- केमटाः-
किलि मिलि किलि सोडगोति
किलि गो नुदु बा इञ मे
जति पति जति पिरोति
जति गो चुन्डुला इञ मे।
- षह्ररः-
बबा गो बाड़ाञ ले बबा बाड़ा इञ
बबा गो बाड़ा इञ षोर लेए लेए।
कोदे गो बाड़ा इञ ले कोदे बड़ा इञ
कोदे गो बाड़ा इञ बोर लेए लेए।