प्रकृति के करीब हो आदिवासी अपने संपूर्ण जीवन काल में जिंदगी के कठोर तपेड़ो से सीख लेकर जिंदगी को जीने का सरल तरीका पा लिया । शायद इसलिए बिहड़ जंगलो और नदी की कल-कल धाराओं में भी अठकेलियाँ करते हुए जीवन को जी रहे है। ‘हो’ आदिवासी को मौसम और शरीर की समक्ष का ज्ञान सदियों से पीढी-दर-पीढ़ी स्थानतरित होता रहा है। यूं कहे आदिवासी जीवन पद्धती खुद में एक औषधी है। स्वास्थ्य उनके दैनिक क्रियाकलाप में है। उनके खान-पान में हैं। अपने चारो ओर के पेड़-पौधे, घास-पूस और वातावरण के जानकर बहुत कम बीमार पड़ते हैं। आदि काल मे देवां तुरी ने स्वास्थ्य से संबंधित “अयुर्वेद पुस्तक” की रचना की थी।
हाल के वर्षो में स्वास्थ्य पर कई काम हो रहे हैं। हो जन जाति में स्वास्थ्य के जानकर एवं बीमारी को ठीक करने वाले व्यक्ति को केवां कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान एवं निवारक जड़ी-बूटी की जानकारी दैविक रुप से केवां को दिया जाता है। यह व्यवस्था सदियों से हो समुदाय में प्रचलित है।