यह मानव शिक्षा का ही दूसरा पहलू है जिसे प्रत्येक गाँव में अखड़ा बना कर दिया जाता है। देवां विद्या का शुरुआत टुअर कसरा कोड़ा से माना जाता है। परन्तु इस विद्या को विश्व हित में सर्वोच्च स्थान प्रदान करने के कारण बिञ-विक्रम को देवां विद्या का विश्व गुरु कहा जाता है। प्रत्येक गाँव मे हेरमुट के बाद अमावस्या में अखड़ा का निर्माण कर देवां विद्या को पठन-पाठन के रुप में आरंभ किया जाता है। यह कच्चा दशहरे के एक माह पूर्व तक चलता है और दसाँए के रुप में अंतिम परीक्षा में शामिल होते हैं। परीक्षा को पास करने के पश्चात गुरु के द्वारा शपथ लेकर देवां विद्या को करने के लिए स्वतंत्र होते हैं।